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क्या कहता है विज्ञान: अंतरिक्ष कैसे पहुंचाए जाते हैं उपग्रह – My Print Value




अंतरिक्ष (Space) में जाना इंसान के लिए सदियों से एक सपना रहा है. जहां इंसान को वायुमंडल में ही ऊंचाई तक पहुंचने में सैकड़ों साल लग गए और वह विमान बना पाया. अंतरिक्ष में जा पाना इंसान के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. अंतरिक्ष में जाना आसान नहीं है. आज कई अंतरिक्ष यान और कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में इतनी ज्यादा मात्रा में पहुंचाए जा रहे हैं कि ऐसा लगता है कि  (Satellite) अब यह बहुत आसान काम हो गया है. लेकिन यह आज भी बहुत मुश्किल काम है. अंतरिक्ष में रॉकेट (Rocket) के जरिए यानों को पहुंचाना बहुत ही चुनौती भरा और खर्चीला काम है जिस पर हमारे वैज्ञानिक आज भी काम कर रहे हैं.
कब से शुरू होता है अंतरिक्ष
अंतरिक्ष में चीजें कैसे जाती हैं यह जानने के लिए यह समझना जरूरी है कि अंतरिक्ष की शुरुआत कहां से होती है. इस की शुरुआत कारमान रेखा से होती है जो पृथ्वी की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाती है, जबकि आमतौर पर वायुयान केवल 10 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक ही जा सकते हैं.
वायुमंडल तो बहुत ऊपर तक
तकनीकी तौर पर हमारे वायुमंडल के प्रभाव के लिहाज से देखें को अतंरिक्ष पृथ्वी से 10 हजार किलोमीटर ऊंचाई से शुरू होता है जहां पृथ्वी का असर पूरी तरह से खत्म माना जा सकता है. लेकिन हमारे कृत्रिम उपग्रह इस सीमा से काफी नीचे तक पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं. फिर भी कारमान रेखा को इस प्रश्न के नजरिए से अंतरिक्ष की शुरुआत माना जा सकता है.
वायुयान के साथ समस्या
सवाल यह उठता है कि क्या वायुयानों को अंतरिक्ष तक ले जाया जा सकता है या नहीं. इसका उत्तर ऐसा क्यों नहीं होता इसमें छिपा है. सबसे पहले तो जैसे जैसे हम ऊपर उठते हैं हवा और ऑक्सीजन दोनों ही कम होने लगते हैं. जहां वायुयानों अपनी उड़ान के लिए  हवा और ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं. हमें भी सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वायुयान के इंजन सामने से हवा को खींचते हैं और उससे ईंधन जलता है जदो ऑक्सीजन से मिला हुआ होता है. इससे हवा गर्म होती है जो बहुत तेजी से पीछे की ओर निकलती है और विमान आगे बढ़ता है.

वायुयान क्यों नहीं
लेकिन ज्यादा ऊंचाई में वायुयानों को पर्याप्त हवा या ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. इसलिए विमान को ज्यादा ऊंचाइयों पर नहीं उड़ाया जा सकता है. इसके अलावा ऊंचाइयों में भी इंसान का सांस लेना भी मुश्किल हो  जाता है इसलिए विमान को अगर इतनी ऊंचाई तक ले जाना तो ऑक्सीजन की भी व्यवस्था करनी होगी. इसलिए अंतरिक्ष में जाने के लिए हमें विमान की जगह दूसरी व्यवस्था की जरूरत पड़ी.

एक समाधान के रूप में रॉकेट
यहीं पर हमें रॉकेट की जरूरत पड़ी जिसने हमारी इन समस्याओं का हल निकला. जहां वायुयान के इंजन को हवा से ही ऑक्सीजन मिलती है, ऐसा रॉकेट के इंजन के साथ नहीं होता है. उसके लिए ऑक्सीजन या हवा की आपूर्ति के लिए अलग से व्यवस्था  होती है जो रॉकेट अपने साथ खुद ले जाते हैं. इसकी वजह से रॉकेट में दूसरे सामान और यात्रियों के लिए जगह कम हो जाती है. लेकिन वे ऊंचे अंतरिक्ष में भी काम कर सकते हैं जहां हवा बिलकुल भी नहीं होती है. और जहां अधिकांश सैटेलाइट काम करते हैं.

न्यूटन का तीसरा नियम
रॉकेट के इंजन गैस को बहुत तेजी से नीचे की ओर फेंकते हैं और न्यूटन के तीसरे नियम काम करता है जिससे रॉकेट ऊपर की ओर जाता रहता है. जब गुब्बारे में हवा भर कर उसे बिना बांधे छोड़ा जाता है, तब गुब्बारा भी विपरीत दिशा में तेजी से जाता है. यहां भी यही सिद्धांत काम करता है. लेकिन अंतरिक्ष में जाने में बहुत ताकत लगती है और इसके लिए बहुत अधिक मात्रा में और बहुत ही परीष्कृत ईंधन की जरूरत होती है.

रॉकेट के सीमित उपयोगिता
अंतरिक्ष की यात्रा में भार का बहुत महत्व होता है. इसके अलावा रॉकेट को वायुमंडल के घर्षण का भी सामना करना होता है इसलिए उसका बाहरी आवरण भी खास तरह से डिजाइन किया जाता है. यह आवरण अंतरिक्ष में जाने के बाद उपग्रह या यान के लिए उपयोगी नहीं होता है. बल्कि अंतरिक्ष यान के बाहरी आवरण को तो सूर्य के प्रकाश की जरूरत होती है जिससे सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सके.
प्रक्षेपण के लिए यान ही रह जाते हैं रॉकेट
इन सभी विरोधाभासी जररूतों को देखते हुए अब विकसित होते होते स्थिति यह हो गई है कि रॉकेट एक यान भर हो गए हैं जिसके अंदर उपग्रह या अंतरिक्ष यान को रख कर भेजा जाता है और रॉकेट के अलग अलग हिस्से अपनी यात्रा के दौरान अलग होते जाते हैं जिससे रॉकेट और यान का भार काम होता जाता है और ऊपर की उड़ान की मुश्किलें कम होती जाती हैं.
यही वजह है कि आज रॉकेटों को प्रक्षेपण यान भी कहा जाता है. लेकिन वैज्ञानिक अब रॉकेट को उन्नत और कम ऊर्जा के उपयोग वाला बनाने का प्रयास कर रहे हैं. यहां तक कि अब तो ऐसे प्रक्षेपण यान बन रहे हैं जिनका फिर से उपयोग हो सके. यानि वे अंतरिक्ष में यान या उपग्रह पहुंचाएंगे और फिर वायुमंडल में वापस आकर धरती पर फिर से आ जाएंगे जिसके बाद उसकी काम के लिए दोबारा उनका उपयोग हो सके.