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अंतरिक्ष के कचरे की सफाई करेगा ‘चुंबक वाला ट्रक’, यूरोपियन स्पेस एजेंसी की प्लानिंग – My Print Value




12 मई को गुजरात के आणंद जिले के तीन गांवों में आसमान से धातु के रहस्यमयी गोले गिरने की घटना सामने आई थी. भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) ने जब इसकी जांच की तो सामने आया कि ये गोले असल में सैटेलाइट का मलबा थे. समान्य शब्दों में इसे अंतरिक्ष का कचरा (Space Debris) कहा जाता है. 
क्या होता है अंतरिक्ष का कचरा
Space debris को स्पेस जंक या Space pollution भी कहते हैं. ये वे निष्क्रिय चीजें होती हैं जो पृथ्वी की कक्षा में तैरती हैं. इस कचरे में खराब अंतरिक्ष यान, मिशन से जुड़ी चीजें, रॉकेट के टूटे टुकड़े, पेंट के टुकड़े, स्पेसक्राफ्ट से निकले ठोस और तरल पदार्थ, और कण जैसी बेकार की चीजें शामिल होती हैं. ये चीजें किसी काम नहीं आतीं, लेकिन नुकसान ज़रूर करती हैं. अंतरिक्ष का कचरा, अंतरिक्ष यान के लिए जोखिम साबित होता है.
कचरा साफ करने के लिए ClearSpace-1 मिशन
दुनिया में पहली बार अंतरिक्ष का मलबा हटाने के काम की जिम्मेदारी यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने ली है, जो क्लियरस्पेस (ClearSpace) नाम के स्विस स्टार्टअप की मदद से, ClearSpace-1 मिशन शुरू करने जा रहा है. यह ऑर्बिट से मलबे को हटाने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा. इस मिशन को 2025 में लॉन्च करने की योजना है. ईएसए के नए स्पेस सेफ्टी प्रोग्राम के तहत, इस मिशन को शुरू किया जाएगा.
क्लियरस्पेस के फाउंडर और सीईओ ल्यूक पिगुए (Luc Piguet) का कहना है कि इस तरह के मिशन के लिए यह सही समय है. आज अंतरिक्ष में लगभग 2000 लाइव सैटेलाइट हैं, 3000 से ज्यादा बेकार हैं. आने वाले सालों में सैटेलाइट की संख्या बढ़ेगी, इसलिए यहां खराब सैटेलाइट्स को हटाने के लिए एक ‘टो ट्रक’ (Tow truck) की ज़रूरत होगी. यानी माल ढोने वाले ट्रक की या खींचने वाले ट्रक की.
नासा और ESA के अध्ययनों से पता चलता है कि इसका एक ही तरीका है, बड़े मलबे को सक्रिय रूप से हटाना. इसके लिए एक नए प्रोजेक्ट के जरिए, जरूरी गाइडेंस, नेविगेशन और कंट्रेल टेक्नोलॉजी, उनके मिलने की जगह और उन्हें पकड़ने के तरीकों का विकास करना जारी रखेंगे. इस प्रोजेक्ट को एक्टिव डेबरिस रिमूवल/इन-ऑर्बिट सर्विसिंग(Active Debris Removal/ In-Orbit Servicing – ADRIOS) कहा जाता है. इसके नतीजों को ClearSpace-1 पर लागू किया जाएगा. 
कैसे काम करेगा यह प्रोजेक्ट
2013 में ईएसए के वेगा लॉन्चर की दूसरी उड़ान के बाद, क्लियरस्पेस -1 मिशन वेस्पा (Vega Secondary Payload Adapter) को करीब 800 किमी से 660 किमी की ऊंचाई की कक्षा में छोड़ेगा. वेस्पा का द्रव्यमान 100 किलो है और यह एक छोटे सैटेलाइट के आकार का है. 
500 किलोमीटर की निचली कक्षा में क्लियरस्पेस -1 ‘चेज़र’ को लॉन्च करेगा, जो कक्षा में टार्गेट को ढूंढेंगे और ESA की निगरानी में इसके रोबोटिक आर्म्स कचरे को पकड़ेंगे. इसके बाद चेज़र और वेस्पा दोनों को डीऑर्बिट किया जाएगा और वायुमंडल में जला दिया जाएगा.
जाापन ने भी किया टेस्ट
जापानी कंपनी एस्ट्रोस्केल (Astroscale) ने भी स्पेस क्लीनिंग में कदम रखा और इसके लिए एक एक्पेरिमेंट किया. इस मिशन का नाम था End-of-Life Services by Astroscale-demonstration (ELSA-d) mission. ELSA-d दो सैटेलाइट्स से मिलकर बना है, इसे उड़ने वाला मैगनेटिक टो ट्रक भी कहा जा रहा है. इसमें बेहद शक्तिशाली चुंबक (Magnet) लगे हैं. मैग्नेट की मदद से कचरे को पकड़ा जाएगा. इसके बाद इसे पृथ्वी के वातावरण में खींच लिया जाएगा, जहां ये खुद-ब-खुद जल जाएगा. हाल ही में ये एक्सपेरिमेंट किया गया, जो करीब करीब सफल रहा. हालांकि टेक्निकल समस्या की वजह से मिशन को अबॉर्ट करना पड़ा.  
कैसे इकट्ठा होता है ये कचरा
रूस ने नवंबर 2021 में डिस्ट्रक्टिव डायरेक्ट एसेंट ASAT मिसाइल टेस्ट किया था, जिसमें उन्होंने अपने एक सैटेलाइट को मिसाइल से नष्ट कर दिया था. इससे अंतरिक्ष में ढेर सारा मलबा इकट्ठा हो गया था. 2007 में चीन ने भी इसी तरह का टेस्ट किया था. करीब एक महीन पहले भी खबर आई थी कि रूस का एक रॉकेट अंतरिक्ष में जाकर फट गया जिसने अंतरिक्ष के कचरे को थोड़ा और बढ़ा दिया. यानी इस तरह के टेस्ट या फिर अंतरिक्ष में खराब हो चुकी चीजों के पास जाने की और कोई जगह नहीं होती, लिहाजा ये अंतरिक्ष में ही तैरती रहती हैं.
अंतरिक्ष के कचरे को लेकर दुनिया चिंतित
General Catalog of Artificial Space Objects के मुताबिक, पृथ्वी की कक्षा में अलग-अलग आकार की 22,000 से ज्यादा चीजें हैं, जिनका वजन करीब 8,000 टन से ज्यादा बताया जा रहा है. वैज्ञानिकों के लिए ये चिंता की बात है, क्योंकि ये अंतरिक्ष के लिए ठीक नहीं है. हालांकि इससे निपटने के लिए अमेरिका ने पिछले महीने इस तरह के किसी भी टेस्ट को करने पर रोक लगा दी. अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने घोषणा की कि अंतरिक्ष मलबे को कम करने और लो-अर्थ ऑर्बट (low-Earth orbit) में सैटेलाइट की सुरक्षा के लिए अमेरिका अब ASAT मिसाइल टेस्ट नहीं करेगा. उन्होंने बाकी देशों से भी इसी तरह का सहयोग करने की अपील की.