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क्या कहता है विज्ञान: अंतरिक्ष में क्यों नहीं होता है ऊष्मा का अहसास? – My Print Value




अंतरिक्ष (Space) में ऊष्मा का अहसान नहीं होता है, लेकिन फिर ऊष्मा का प्रवाह ऊर्जा के रूप में जरूर होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
धरती पर गर्मी का अहसास (Feeling of Heat) हमें गरम हवा के छूने से होता है. पानी का छू कर हम पता लगाते हैं कि वह ठंडा है या गर्म. लेकिन क्या अंतरिक्ष में हम गर्मी या ठंडक का अहसास कर सकते हैं? या क्या ऊष्मा (Heat) अंतरिक्ष (Space) में यात्रा कर सकती हैं जिससे ऊष्मा का प्रवाह हो और इंसान भी गर्माहट और ठंडक का अहसास कर सके? या फिर क्या अंतरिक्ष में ऐसे कारक हैं जिनसे ऊर्जा (Energy) अपना स्वरूप बदल कर ऊष्मा के प्रवाह में बदल जाती है. आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में ऊष्मा का अहसास के होने या ना होने पर क्या कहता है विज्ञान.
परमाणुओं से करनी होगी शुरुआत
इन सब सवालों के जवाबों को जानने से पहले हमें ऊष्मा और उसकी प्रकृति को ही समझना होगा. इसके बाद हम पाएंगे कि जहां कुछ सवालों को बदलने की जरूरत है तो तो कुछ खुद ही खत्म  हो जाएंगे. ऊष्मा को समझने के लिए हमें शुरुआत अणुओं से करनी होगी. हम जो भी स्पर्श करते या देखते हैं वास्वत मे वह परमाणुओं से बान होता है. परमाणु पदार्थ की सबसे छोटी एकीकृत ईकाई होते हैं और इन्हें बिना किसी उपकरण की मदद से देखा भी नहीं जा सकता है.
ऊर्जा और परमाणु
यदि कोई चीज गर्म है तो इसका अर्थ यह होता है कि उस चीज के परमाणुओं में बहुत ज्यादा ऊर्जा है और वह उस वस्तु के आसपास निकल रही है. यदि कोई वस्तु ठंडी है और उसके परमाणुओं में बहुत कम ऊर्जा है और वे परमाणु स्थिर हैं. लेकिन अंतरिक्ष में निर्वात होता है यानी वहां अधिक पदार्थ की उपस्थिति नहीं होती है.
अंतरिक्ष में सौर पवनें
लेकिन अंतरिक्ष भी पूरी तरह से निर्वात नहीं होता है, यदि हम अंतरिक्ष में तारे, पृथ्वी आदि पिंडों को छोड़ दे तो भी अंतरिक्ष पूरी तरह से निर्वात नहीं होता है. सूर्य और अन्य तारे लागातार पदार्थ अंतरिक्ष में फैंकते रहते हैं. यह पदार्थ सौर पवन के रूप में अंतिरक्ष में फैलता है. इसी की वजह से ध्रुवों पर ऑरोर जैसी परिघटनाएं देखने को मिलती हैं. लेकिन सौर पवनों में हवा की तुलना में भी बहुत रही कम परमाणु होते हैं. यानि उससे भी बहुत ऊष्मा का नहीं होती है.

तीन प्रकार से ऊष्मा का प्रवाह
इसे समझने के लिए हमें ऊष्मा प्रवाह के प्रकारों को समझना होता दरअसल ऊष्मा तीन तरह से संचारित होती है. और इसी से हमें पता चलेगा कि आखिर अंतरिक्ष ऊष्मा प्रवाह के साथ क्या समस्या है. ये तीन तरीके हैं चालक या प्रवाहकत्व (Conduction), संवहन (Convection), या विकिरण (Radiation).
चालक यानि स्पर्श के जरिए
चालक या प्रवाहकत्व में ऊष्मा का स्थानांतरण स्पर्श के जरिए होता है. आप कुछ गर्म छुएंगे तो ऊष्मा आपके अंदर आने लगेगी. आप कुछ ठंडा छुएंगे तो ऊष्मा आपमें से उस पदार्थ में जाने लगेगी. धातुएं जैसे पदार्थों को सुचालक माना जाता है जबाकि जहां उष्मा स्पर्श से अच्छे से प्रवाहित नहीं होती उन्हें कुचालक माना जाता है. लेकिन सूर्य को हम छू नहीं सकते और अंतरिक्ष दोनों के बीच माध्यम भी नहीं बन सकता है.

संवहन के जरिए प्रवाह
ऊष्मा का प्रवाह संवहन से भी हो सकता है. इसमें ऊष्मा का स्थानांतरण द्रव्यों के बहाव के जरिए होता है. गैस और तरल पदार्थ दोनों ही ऊष्मा का संवहन करते हैं. समुद्रों और जलाशयों में इसका सबसे अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है. जब महासागरों और अन्य जलीय पिंडों की सतह गर्मी से गर्म होती है, तब ऊष्मा संवहन के जरिए नीचे की ठंडी सतहों तक पहुंचती है. इसी तकनीक चूल्हों पर रखा बर्तन में रखे पानी पहले प्रवाहकत्व के जरिए बर्तन के तली से सटी पानी की परत गर्म होती है और फिर संवहन से पानी की बाकी परतें यानि पूरा पानी गर्म होता है.
अंतरिक्ष में संभव नहीं ये दोनों प्रणालियां
लेकिन अंतरिक्ष तो निर्वात है और वहां किसी भी तरह का द्रव्य यानि तरल या गैसीय पदार्थ नहीं है जिससे ऊष्मा का संवहन हो सके. तो ऐसे में एक ही विकल्प बचता है जिससे अंतरिक्ष से सूर्य की भी गर्मी पृथ्वी तक पहुंच सके, वह है विकिरण. विकिरण में परमाणुओं के स्पर्श या फिर उनके आपस में टकराव द्वारा ऊष्मा का आदान प्रदान नहीं होता है.
ऊष्मीय विकिरण या उत्सर्जन
गर्म पिंड जैसे की सूर्य और यहां तक कि हमारा शरीर भी ऊष्मा निकलता है. यहां तक कि ब्रह्माण्ड का हर पदार्थ गर्म होने पर ऊष्मा फेंकता है बाहर निकलता है. ऊर्जा मिलते ही पदार्थ के परमाणु हिलने लगते हैं और कंपन करते हुए वे विद्युतचुंबकीय ऊर्जा का विकिरण करते हैं या उत्सर्जन करते हैं. इसे ऊष्मीय विकिरण भी कहते हैं.
सूर्य से आने वाली विद्युतचुंबकीय ऊर्जा
विद्युतचुंबकीय ऊर्जा कई प्रकार की होती हैं जिसमें कई तरह की तरंगों का मिश्रण होता है.  कुछ तरगों को हम देख सकते हैं इन्हें दृष्टिगत प्रकाश की किरणें कहते हैं. वहां इंफ्रारेड ऊर्जा को देखा नहीं जा सकता है लेकिन अत्यधिक गर्मी में ये तरंगों के रूप में ज्यादा निकलती हैं. इन तरंगों को स्थानांतरण के लिए पदार्थ की जरूरत नहीं होती है. सूर्य आने वाली यह ऊर्जा तरंगें निर्वात में प्रकाश की गति से पृथ्वी तक आती हैं.
पृथ्वी पर विकिरण आने पर
पृथ्वी पर आने के बाद इनके कई हिस्से बंट जाते हैं कुछ वायुमंडल की गैसों के अपने संपर्क में आते ही गर्म को कर देती हैं तो कुछ पृथ्वी की सतह से टकराती हैं और उसे (जमीन और पानी दोनों) गर्म कर देती है. गर्म जमीन इंफ्रारेट तरंगों के रूप में इसे वायुमंडल में वापस फेंकती है जिससे वायुमंडल भी गर्म हो जाता है और हमें भी गर्मी का अहसास होता है. कुछ विकिरण की ऊर्जा वापस प्रतिबिंबित भी हो जाती है.
लेकिन अंतरिक्ष में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती है जिससे हमें गर्मी या फिर तापमान का अहसास हो सके क्योंकि हमारी त्वचा के अहसास के लिए पर्याप्त संवहन या चालन के लिए व्यवस्था नहीं होती है. हां विकिरण के जरिए ऊष्मा अन्य ऊर्जा तरंगों के रूप में जरूर विकिरणित होती रहती है. दिलचस्प बात यह है कि इन विकरण में कई आवेषित महीन कण भी होते हैं जो शरीर के अंदर आसानी से घुस कर पार निकल सकते हैं और उससे पहले हमारे शरीर को बहुत नुकसान भी पहुंचा सकते हैं. लेकिन तब भी शायद हमें ऊष्मा का अहसास नहीं होगा.